Sunday, October 19, 2014

सोशल मीडिया

सोशल मीडिया पर शिकायती लहज़े में की गई पोस्ट,व्यंगात्मक टिप्पणियों की बाढ़ लगी रहती है. तो क्या सचमुच हम इतने नकारात्मक हैं? हममें से कोई भी स्वयं को नकारात्मक मानने से इंकार करेगा।(दूसरे भले ही हो सकते हैं) पर हम थोड़ा आत्ममंथन करें तो कब हमने अपने पड़ोस के उन प्रोफेसर अंकल के बारे में बात की जो सर्वथा संपन्न होने के बावजूद सुबह पैदल सब्जी लेने जाते हैं.…आसपास के गरीब बच्चों को पढ़ाते हैं और यथासंभव उनकी मदद करते हैं .हम तो उन अंकल की फोटो पोस्ट करते हैं जो गुलाबी कपड़ों में कही जा रहे थे और हम अब वो 'गे' हैं या नहीं इस पर बहस कर रहे हैं.
क्या कभी हम उन आंटी के बारे में कोई पोस्ट कर सके जिन्होंने मॉर्निंग वाक के दौरान एक लड़के को इसलिए थप्पड़ लगाया कि वो एक निम्न तबके की लड़की को छेड़ रहा था? नहीं,हम तभी पोस्ट करेंगे जब कोई बुरी घटना घट जाएगी.उस लड़के के बारे में क्यों पोस्ट नहीं करते जिसने अनजान होते हुए भी ट्रेन से टैक्सी तक आपका सामान पहुँचाने में मदद की और आपका नाम तक जानने की कोशिश नहीं की.… (हाँ तो इसमें कौन सी बड़ी बात है ये अक्सर होता है)…… ये तीनों ही बेहद सामान्य घटनाएँ है और हम सब के आस पास घटती हैं.…पर शायद हम इनकी सकारात्मकता को नज़रअंदाज़ करते हैं क्योंकि ये हमेशा होती हैं.हम नकारात्मक बातों पर इतनी जोरदार बहस करते हैं कि लगता है अब तो अच्छाई बची ही नहीं दुनिया में.
याद करिये अंतिम बार आपने/आपके किसी साथी ने /आपके परिवार के किसी सदस्य ने कब किसी लड़की को ईव टीजिंग से बचाने की कोशिश की थी.…… फर्क नहीं पड़ता आप महिला हैं या पुरुषं। यदि आपके लिए ये याद करना मुश्किल हो रहा है तो फिर आप क्यों अपेक्षा करते हैं कि कल कोई आपके साथ खड़ा होगा।बड़ी आसानी से हम कह देते हैं कि मेरे साथ ऐसा हो रहा था और लोग तमाशा देख रहे थे.…उस समय हम उन घटनाओं को क्यों भूल जाते हैं जहाँ हम मूकदर्शक बने हुए थे। सार्वजनिक स्थलों पर हम बड़े आराम से F वर्ड का इस्तेमाल करते हैं हमे LMAO पर आपत्ति नहीं है तो फिर कोई देशज भाषा में यही बातें करने वाला गंवार और ज़ाहिल कैसे हो गया ?? गलत शब्द तो किसी भी भाषा में हो गलत ही हैं.…पर हम सुधार की अपेक्षा हमेशा दूसरों से करते हैं.बेहतर है जब तक हम सुधर नहीं जाते शिकायत करना छोड़ें और सोशल मीडिया में बेकार का ढोंग करना बंद करें।