Monday, December 3, 2012

काली साड़ी

सुबह से गाँव में हलचल है !! मीडिया वाले समारू के घर के पास डेरा जमाये बैठे हैं।एक कोतवाल के हवाले रहने वाले गाँव में आज थानेदार साहब भी मौजूद हैं .....व्यवस्था बनी हुई है।ठीक 10 बजे तीन गाड़ियों का काफिला पंहुचा।पुलिस से लेकर पत्रकारों तक ने अपनी जगह ले ली है।सफ़ेद स्कार्पियो से तीन संभ्रान्त महिलाएं उतरती हैं और पत्रकारों का हुजूम उन्हें घेर लेता है।थानेदार साहब स्वयं रास्ता बनाते हुए उन्हें समारू के घर तक ले जाते हैं,पूरा गाँव उसके आँगन में मौजूद है।चार दिन पहले समारू की पत्नी रमाबाई की हत्या हो गई है,शक के आधार पर समारू को ही जेल में डाला गया है।मैडम 1- "क्या सामने आया अब तक दरोगा जी?" "वही टोनही का शक मैडम,समारू परेशान था गाँव वालों की शिकायतों से ....उसके परिवार को जात बाहर करने की धमकी मिल रही थी,उसका कहना है परिवार के लिए उसने ये किया।" मैडम 2- "गाँव के और कौन लोग शामिल हैं इसमें ?" "हत्या तो बीच गाँव में हुई है पर कोई मुंह नहीं खोल रहा है,अब शक के आधार पर पूरे गाँव को तो अन्दर नहीं कर सकते ना मैडम।"
सम्पूर्ण जाँच पड़ताल के बाद महिला आयोग की इन सदस्यों ने अपनी रिपोर्ट में लिखा कि अ
शिक्षा ही इस प्रकरण की मूल वजह है।शिक्षा के प्रसार से ही लोगों को जागरूक कर टोनही जैसी आशंकाओं से दूर रखा जा सकता है।मीडिया ने इनके उपदेशिक सम्भाषण को लाइव कवरेज दिया।
रवानगी के वक्त,"दरोगा जी वो आम की पेटी ?" "जी मैडम चार पेटी रखवा दिया है गाड़ी में, सभी वैरायटी के हैं ..!!"  गाड़ी वापस शहर की और दौड़ पड़ी हैमैडम 2-"हमारे यहाँ साहब को बहुत पसंद हैं यहाँ के आम।" मैडम 1- "पिकनिक के लिए कितनी मस्त जगह है,आते हैं किसी दिन कहीं आसपास ... फैमिली को लेकर।" मैडम 3-"नई बाबा!!कौन आएगा दुबारा इस गाँव में!!" "क्यों?और आपने इतनी गर्मी में काली साड़ी क्यों पहनी है आज ?" "जादू टोने वाला गाँव है बुरी नज़र से बचने का उपाय तो करना ही पड़ता है।"
ड्राईवर ने सोचा 'मैडम ने कथनी(भाषण) और करनी में अच्छा तालमेल कायम किया है !!'
 

Friday, November 30, 2012

फेसबुक के शेर

मेरे कॉलेज के दिनों के एक मित्र हैं, जो फेसबुक पर काफी सक्रिय रहते हैं।सक्रियता से मेरा तात्पर्य दोस्तों की पोस्ट पर अनावश्यक कमेंट,लाईक या चैटिंग से नहीं है .......नहीं!! इस मामले में उनका FB profile स्पष्ट रूप से मितभाषी प्रतीत होता है।परन्तु देशप्रेम से ओतप्रोत हर तरह के पोस्ट को वो जरुर शेयर करते हैं,चाहे वो भ्रष्टाचार के विरुद्ध कोई पोस्ट हो,लोकपाल से संबधित,सिविल सोसाइटी के आंदोलनों से सम्बंधित,कई तरह के घोटालों से सम्बंधित,विभिन्न क्रांतिकारियों व देशभक्त नेताओं की पोस्ट आदि।यहाँ तक की भ्रष्टाचारी नेताओं की मोर्फिंग की हुई विकृत तस्वीरों को भी वो शेयर करने से नहीं चूकते ......ये उनका और उनके जैसे तमाम लोगों का विरोध प्रदर्शन का अपना तरीका है .......उनकी प्रोफाइल देखकर ही "देश की व्यवस्था" को बदलने की उनकी उद्विग्नता से आप वाकिफ हो जायेंगे।
चूँकि मेरे ही शहर के हैं तो इस दीपावली की छुट्टियों में उनसे काफी दिनों बाद मिलना हुआ।बातों बातों में पता चला उनका मतदाता पहचान पत्र अभी तक नहीं बना है।संयोग से चुनावों को मद्देनजर रखते हुए पूरे प्रदेश में मतदाता पहचान पत्र जारी करने के लिए केंद्र बनाये गए थे,मैंने कहा "एक दिन एप्लीकेशन दे आ यार।"बोले "अरे छोड़ यार !! मुश्किल से 4 दिन की छुट्टी मिली है फ़ोकट के काम में वेस्ट नहीं कर सकता ......इलेक्शन के पहले घर घर जाकर नाम जोड़ते ही हैं इन लोग,उस समय देखेंगे और वैसे भी बैंगलोर से इतनी दूर सिर्फ वोट डालने के लिए थोड़ी आऊंगा ....वोटर id न बने अभी तो भी कोई फर्क नहीं पड़ता ।" 
घर आकर फेसबुक में ऑनलाइन हुआ तो फिर इन्हीं महाशय का एक पोस्ट था अब्दुल कलाम साहब द्वारा दिए वाक्य के साथ "what can i give to my country" ......सोचा फिलहाल तो एक सही वोट ही दे दें, तो शायद देश में कुछ बदलाव आ जाये, बातें और पोस्ट तो शेयर होती रहेंगी।
फेसबुक के शेरों से उम्मीद है शिकार करने(वोट डालने )अपनी गुफा से बाहर निकलेंगे।

Thursday, November 29, 2012

पढ़ेगा भारत तभी बढ़ेगा भारत

दिल्ली में अपने कमरे में बैठा कुरुक्षेत्र मैगज़ीन का ग्रामीण शिक्षा विशेषांक पढ़ रहा था।विभिन्न सरकारी योजनाओं की व्यापक सफलताओं का वर्णन करते हुए, "पढ़ेगा भारत तभी बढ़ेगा भारत "जैसे वाक्यों के साथ बुद्धिजीवियों के लेख थे।साथ में कई फोटोग्राफ भी संलग्न थे, जिन्हें देखकर मैं अचंभित हो रहा था .....उसमें शाला में लाइन से बैठे बच्चे चमचमाती एक जैसी थालियों में पुड़ी,खीर,पापड़,आचार का सेवन कर रहे थे।दूसरी फोटो में सभी बच्चे ड्रेस में थे,प्राइमरी के बच्चे टेबल और बेंच में बैठकर पढ़ रहे थे।एक फोटो में ग्रामीण बच्चे कंप्यूटर पर खिटपिट करते दिखे ........लेखों में दर्शाया तो यही गया कि सभी सरकारी शालाओं में कमोबेश यही स्थिति है,कई हज़ार करोड़ की योजनाओं का हवाला देते हुए यही साबित करने की कोशिश थी कि अब देश में सुदूर अंचलों  में भी 14 वर्ष तक के हर बच्चे को यही सुविधा उपलब्ध है और देश उन्नति की ओर अग्रसर है।अनायास मुझे अपने गृह राज्य की प्राथमिक शाला का ख्याल आ गया ....वहां बच्चे ड्रेस में तो कभी नहीं दिखे !! खुद ही घर से एक थाली लेकर आते हैं और भोजन के नाम पे जो (चावल और कभी कभी मिलने वाली सब्जी अन्यथा कढी से ही काम चलाया जाता है ) परोसा जाता है, उसे खाकर एक साथ बर्तन धोने जाते हैं,ये पूरा कार्यक्रम 2 से 3 घंटे तक चलता है,ऐसे में पढाई का तो भगवन ही मालिक है । बेंच तो दूर की बात कुछ क्लास में दरी भी नहीं है।
मुझे लगा शायद विकसित राज्यों में ये योजनायें सफल हैं और ये तस्वीरें वहां की हैं।मुझे अपने राज्य के पिछड़े होने का एहसास हुआ ....मेरे राज्य को सरकारी योजनाओं का सही लाभ क्यों नहीं मिल पा रहा है, इसके राजनीतिक,आर्थिक,सामाजिक पहलुओं के बारे में विचार करता उससे पहले ही दरवाजे पर दस्तक हुई।पसीने से भीगा हुआ, मटमैले कपड़ों में 10-11 वर्ष का एक बालक मेरा टिफ़िन लेकर आया था,मेरे पूछने पर बताया अब से दद्दा नहीं आएंगे मैं ही टिफ़िन पहुंचाऊँगा।उसे स्कूल ड्रेस पहने देखकर मेरा कौतुहल बढ़ा, किसी पब्लिक स्कूल का ड्रेस था।मैंने पूछा तुम्हारे स्कूल का ड्रेस है ये ??नहीं मैं स्कूल नहीं जाता .....और शर्माता हुआ सीढियों पे दौड़ गया,उसे और भी जगह टिफ़िन पहुँचाना था।
विडम्बना ही है कि इन तमाम योजनाओं से वंचित ये बालक  इन योजनाओं 
को मूर्त रूप देने वाली संसद से 4 km की दूरी पर ही रहता है।